Muharram Ashura 2023 Date, time, Significance, History

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अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद ने इस माह को अल्लाह का महिना कहा है। साथ ही इस माह में रोज़ा रखने की खास अहमियत बयान की है। हजरत मुहम्मद के कोल व अमल से मुहर्रम की पवित्रता व इसकी अहमियत का पता चलता है। ऐसे ही हजरत मुहम्मद ने एक बार मुहर्रम का जिक्र करते हुए इसे अल्लाह का महीना कहा। इसे जिन चार पवित्र महीनों में रखा गया है। उनमें से दो महीने मुहर्रम से पहले आते हैं। यह दो मास हैं जीकादा व जिलहिज्ज। एक हदीस के अनुसार अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद ने कहा है। कि रमज़ान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वे हैं।जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं।

Muharram Celebrated Muharram Kese Manaaya Jaata Hai

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक नए साल की शुरुआत मुहर्रम के महीने से ही होती है। इसे साल-ए-हिजरत भी कहा जाता है। मुहर्रम किसी त्योहार या खुशी का महीना नहीं है। बल्कि ये महीना बेहद गम से भरा है। इतना ही नहीं दुनिया की तमाम इंसानियत के लिए ये महीना इबरत के लिए है। आज से लगभग 1400 साल पहले मुहर्रम के महीने में इस्लामिक तारीख की एक ऐतिहासिक और रोंगटे खड़े कर देने वाली बातिल के खिलाफ इंसाफ की जंग लड़ी गई थी। जिसमें अहल-ए-बैत ने अपनी जान को कुर्बान कर इस्लाम को बचाया था। इस जंग में जुल्म की इंतेहा हो गई जब इराक की राजधानी बगदाद से करीब 120 किलोमीटर दूर कर्बला में बादशाह यजीद के पत्थर दिल फरमानों ने महज 6 महीने के अली असगर को पानी तक नहीं पीने दिया।

जहां भूख-प्यास से एक मां के सीने का दूध खुश्क हो गया और जब यजीद की फौज ने पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को नमाज पढ़ते समय सजदे में ही बड़ी बेहरमी से कत्ल कर दिया| जुल्म की इंतेहा तब हुई जब इमाम हुसैन के साथ उनके उनके महज 6 महीने के मासूम बेटे अली असगर, 18 साल के अली अकबर और 7 साल के उनके भतीजे कासिम हसन के बेटे को भी बड़ी बेरहमी से शहीद किया गया। इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की कुर्बानी की याद में ही मुहर्रम मनाया जाता है। मुहर्रम शिया और सुन्नी दोनों समुदाय के लोग मनाते हैं। हालांकि इसे मनाने का तरीका दोनों का काफी अलग होता है।

Muharram About Special Muharram Par Vishesh

मुहर्रम में कई लोग रोजे रखते हैं। पैगंबर मुहम्मद सा. के नाती की शहादत तथा करबला के शहीदों के बलिदान को याद किया जाता है। कर्बला के शहीदों ने इस्लाम धर्म को नया जीवन प्रदान किया था। कई लोग इस माह में पहले 10 दिनों के रोजे रखते हैं। जो लोग 10 दिनों के रोजे नहीं रख पाते, वे 9 और 10 तारीख के रोजे रखते हैं। इस दिन जगह-जगह पानी के प्याऊ और शरबत की छबील लगाई जाती है। इस दिन पूरे देश में लोगों की अटूट आस्था का भरपूर समागम देखने को मिलता है। कर्बला यानी आज का इराक, जहां सन् 60 हिजरी को यजीद इस्लाम धर्म का खलीफा बन बैठा। वह अपने वर्चस्व को पूरे अरब में फैलाना चाहता था जिसके लिए उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी पैगम्बर मुहम्मद के खानदान के इकलौते चिराग इमाम हुसैन, जो किसी भी हालत में यजीद के सामने झुकने को तैयार नहीं थे।

Moharram Par Khanjar Aur Talavaaren Se Kyon Ghaayal Hote Hai

शिया मुस्लिम अपनी हर ख़ुशी का त्याग कर पुरे सवा दो महीने तक शोक और मातम मनाते है। हुसेन पर हुए जुल्म को याद करके रोते है। ऐसा करने वाले सिर्फ मर्द ही नही होते बल्कि बच्चे, बूढ़े और ओरतें भी है। यजीद ने इस युद्ध में बचे औरतों और बच्चों को कैदी बनाकर जेल में डलवा दिया था। मुस्लिम मानते हैं कि यजीद ने अपनी सत्ता को कायम करने के लिए हुसैन पर ज़ुल्म किए। इन्हीं की याद में शिया मुस्लिम मातम करते हैं।और रोते हैं। इस दिन मातमी जुलूस निकालकर वो दुनिया के सामने उन ज़ुल्मों को रखना चाहते हैं। जो इमाम हुसैन और उनके परिवार पर हुए। खुद को जख्मी करके दिखाना चाहते हैं| कि ये जख्म कुछ भी नहीं हैं। जो यजीद ने इमाम हुसैन को दिए।

मुहर्रम का पैगाम लड़ाई और जंग कुर्बानी मांगते हैं। लड़ाई का अंत हमेशा तकलीफदेह होता। इसलिए यह शहदाद का त्यौहार का अमन और शांति का पैगाम देता है। साथ ही मुहर्रम यह संदेश भी देता है| कि धर्म और सत्य के लिए घुटने नहीं टेकने चाहिए। आपने देखा होगा कि मुहर्रम वाले दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बड़े-बड़े ताजिये बनाकर झांकी निकालते हैं। आपको बता दें कि ताजिया बांस की लकड़ी से तैयार किये जाते हैं| और उन्हें विभिन्न चीजों से सजाया जाता है। दरअसल इसमें इमाम हुसैन की कब्र बनाई जाती है| और मुस्लिम शान से उसे दफनाने जाते हैं। इसमें मातम भी मनाया जाता है और फक्र के साथ शहीदों को याद भी किया जाता है।